आदरणीय श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा रचित एक कविता, मात्र उनकी कल्पना नहीं बल्कि हमारे लोगों,हमारी संस्कृति,हमारे समाज की वास्तविकता है।
विश्व की सर्वोच्च संस्कृति भारतीय संस्कृति है,यह कोई गर्वोक्ति नहीं अपितु वास्तविकता है। भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहकर सम्मानित किया गया है। आज जब पूरी संस्कृति पर पाश्चात्य सभ्यता का तेजी से आक्रमण हो रहा है,यह और भी अनिवार्य हो जाता है कि, उसके हर पहलू को जो विज्ञान सम्मत भी है तथा हमारे दैनिक जीवन पर प्रभाव डालने वाला भी,हम इसे जन-जन के समक्ष प्रस्तुत करें ताकि हमारी धरोहर हमारी संस्कृति के आधार भूत तत्व नष्ट न होने पायें।भारतीय संस्कृति को मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कहा जा सकता है। हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवीय चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है। मनुष्य में पशुओं के संस्कार उभरने न पाये,यह हमारी संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है। भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है और मनुष्य में संत,समाज सुधारक,राष्ट्र भक्ति,त्याग,बलिदान की मनोभूमि को विकसित कर उसे मनीषी,ऋषि,महामानव,देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है।
सैकड़ों वर्षों से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है।
"कोष-कोष में बदले पानी,चार कोस में वांणीं"।
भारत की संस्कृति,रीति-रिवाजों की विविधता के संदर्भ में यह पंक्तियाँ सही बैठती हैं।
अब समय आ गया है भारत के मूल सिद्धात तथा उसकी प्रमुख विशेषता विविधता में एकता को बनाए रखने का।
साथ ही अपने हितों के लिए राजनीतिक दलों द्वारा देश में फैल रहे जातिवाद के संक्रमण तथा उसके दुष्प्रभाव से देश को सुरक्षित रखने का।
अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए आज हमें आपसी सद्भावना और सौहार्दपूर्ण व्यवहार की अति-आवश्यकता है।
उत्तराखण्ड की भी अपने रीति-रिवाजों,संस्कृति,बोली-भाषा को लेकर एक अलग पहचान है।
हमें अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए राजनीतिक,आर्थिक मतभेदों से ऊपर उठकर धर्महित,राष्ट्रहित के लिए काम करना होगा।
संस्कृति का निर्माण समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों के योगदान से होता है।
उत्तराखण्ड की संस्कृति में सबसे अधिक योगदान यहाँ के ढोल-दमाऊ, रणसिंहा,मशकबीन, वादक(बाजन्तरी) व छोलिया नृत्य करने वालों का है।
इनके बिना हम किसी भी धार्मिक,सामाजिक आयोजनों की कल्पना नहीं कर सकते।
इनसे जुड़े कलाकारों व इनके जीविकोपार्जन का हमें सम्मान करना चाहिए। ये लोग हमारे अपने ही हैं,ये अपनी कला का प्रदर्शन केवल धन के लिए नही अपितु अपनी जिम्मेदारी भी समझते हैं।
हमें अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए बहुत गहराई तक जाना होगा और वास्तविकता को पहचानना होगा।
बाहरी लोग हमारी संस्कृति को नहीं बचा सकते,वे केवल पैसों के लिए काम करते हैं।
संक्षिप्त विवरण दिया है।
"धन्यवाद"
Post by- जगमोहन पटवाल
थबड़िया मल्ला,बीरोंखाल