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विकास पहाड़ कब चढ़ेगा? उसके अंदर उमंग,उम्मीदों से भरी फाइलें
विकास पहाड़ कब चढ़ेगा?उसके अंदर उमंग,उम्मीदों से भरी फाइलें:
पहाडों के उन सभी दुकानदारों का धन्यवाद जो स्थानीय कृषि उत्पादों फल,सब्जियों आदि को महत्व देकर यहाँ के मेहनती किसान भाइयों से खरीद कर क्रय-विक्रय कर रहे हैं।
ये हैं ग्राम तिमलाखोली(बीरोंखाल) के मेहनती किसान श्री गुमान सिंह जी ये और इनके जैसे और भी बहुत से मेहनती किसान भाई जो कड़ी मेहनत करके, पैदल लंबा रास्ता तय करके,वर्षों से बाजारों तक अपने कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए ले जाते रहे हैं और सरकारों द्वारा पूर्व व वर्तमान में की गई आत्मनिर्भरता जैसी अनेकों घोषणाओं और पैकेजों का बिना लाभ लिए अपने आप में आत्मनिर्भर हैं,आत्मनिर्भर जैसे शब्द इनके जैसे मेहनती पहाड़ी किसान भाइयों के लिए कोई नई बात नहीं है,ये आत्मनिर्भरता के उदाहरण हैं।
इनके द्वारा अपने सीमित संसाधनों,जैविक खाद से पैदा की गई कैल्शियम के गुणों से भरपूर(मैदानी इलाकों की अपेक्षा अधिक स्वादिष्ट) मूलियों को देखकर मैंने इनसे पूछा कि कितना उत्पादन हुआ है,इनका कहना था कि उत्पादन तो बहुत हुआ है लेकिन समय और परिवहन न होने के कारण आपूर्ति में बहुत ही परेशानी होती है।
माना कि इनके द्वारा एक क्विंटल मूली भी उगाई गई होगी और यह बाजार तक केवल पचास किलो ही पहुंचा पाते हैं बाकी का पचास किलो समय पर न पहुंचने के कारण बर्बाद हो जाता है तो इसमें दोष किसका है?
मैदानी इलाकों के किसानों,दुग्ध उत्पादकों के लिए विकसित की गई डेरियों जैसा विकास अगर पहाडों के गांव-गांव तक पहुंचे तो यकीन मानिये दूध की जिस गुणवत्ता को देखकर सरकार मूल्य निर्धारण करती है वह मैदानी इलाकों की अपेक्षा अधिक होगा और उससे बने उत्पादों दही,घी,मक्खन,क्रीम,मावा,पनीर,छांछ आदि का स्वाद भी अपेक्षाकृत अधिक होगा,बहुत लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।
अगर सरकार पहाडों के विकास को प्राथमिकता देते हुए सड़क,बिजली,पानी,परिवहन जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों का तेजी से विकास करे तो लोगों को रोजगार के बहुत अवसर प्राप्त होंगे।
लेकिन विकास को पहाड़ चढने में बहुत ही समय लग जाता है,उसके अंदर उमंग,उम्मीदों से भरी फाइलें राजधानी से अधिकारियों की गाड़ियों में धक्का खाते हुए यहाँ के विकासखंडों में पहुंचने तक इतना थक जाती है कि लंबे समय तक कार्यालयों की आलमारियों में आराम करना चाहते हैं,फिर सरकारी अवकाश,द्वितीय-चतुर्थ शनिवार,रविवार अवकाश, हड़ताल आदि बहुत रोगों से ग्रसित होकर वापस राजधानी लौट जाना चाहते हैं व मैदानी इलाकों तक ही सीमित रहना चाहते हैं।
धन्यवाद 

पोस्ट-जगमोहन पटवाल
थबड़िया मल्ला