गढ़वाली (गढ़वती भाख / भाषा) एक केंद्रीय पहाड़ी भाषा है जो इंडो-आर्यन भाषाओं के उत्तरी क्षेत्र से संबंधित है। यह मुख्य रूप से गढ़वाली लोगों (गढ़वी मन्खि) द्वारा बोली जाती है, जो भारतीय हिमालय में उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल (गढ़वा) से हैं। केंद्रीय पहाड़ी भाषाओं में गढ़वाली और कुमाउनी (उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र में बोली जाने वाली) शामिल हैं। गढ़वाली, कुमाउनी की तरह, उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर बोली जाने वाली कई क्षेत्रीय बोलियाँ हैं। गढ़वाली के लिए प्रयुक्त लिपि देवनागरी है।
जो की विलुप्ती की कगार पे है क्योंकि लोग बड़ी मात्रा मे पलायन कर रहे है इसका बड़ा कारण है रोजगार और बुनियादी जरूरते।लोग शहरो मे रह रहे है।अगर आप किसी भी पहाड़ी गांव मे जायेगे तो वहां पर ज्यादा मात्रा मे वृद्ध लोग ही मिलेंगे।हम मानते है कि बुनयादी जरूरतों के लिए पलायन करना पड़ रहा है परंतु लोगो को ये भी समझना होगा कि आने वाली पीढ़ी को हम अपनी संस्कृति और भाषा से वंचित रख रहे है। हालांकि अगर पहाड की राजधानी गैरसैण को बनाया जाये तो यहां के निवासियों को बाहर जाने की जरूरत नहीं होगी । तब जब राजधानी पहाड में बनेगी तब रोजगार के बहुत से माध्यम उपलब्ध होंगे । एवं पलायन में भी कमी आयेगी।
गढ़वाली इंडो-आर्यन भाषा परिवार की केंद्रीय पहाड़ी शाखा का सदस्य है। यह मुख्य रूप से भारत के उत्तर में उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मंडल में बोली जाती है। वर्ष 2000 में गढ़वाली के लगभग 2.92 मिलियन वक्ता थे, जिन्हें गढ़वाली, गढ़वाला, गदवाही, गशवाली, गिरवाली, गोदौली, गोरवाली, गुरवाली या पहाड़ी गढ़वाली के रूप में भी जाना जाता है।
गढ़वाली की बोलियाँ
गढ़वळि भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ प्रचलित हैं यह गढ़वाल के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न पाई जाती है।
जौनसारी, जौनसार बावर तथा आसपास के क्षेत्रों के निवासियों द्वारा बोली जाती है।
मार्छी, मर्छा (एक पहाड़ी जाति) लोगों द्वारा बोली जाती है।
जधी, उत्तरकाशी के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
सलाणी, टिहरी के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है।
श्रीनगरिया, गढ़वळि का परिनिष्ठित रूप है।
राठी, पौड़ी क्षेत्र के राठ क्षेत्र में बोली जाती है।
चौंदकोटी, पौड़ी में बोली जाती है।