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संस्कृति के उन सभी संवाहकों,व प्रचलित कृषि कार्यों
उत्तराखण्ड संस्कृति के उन सभी संवाहकों,व प्रचलित कृषि कार्यों में लगे उन सभी पहाड़ में रहने वाले भाई-बहनों का धन्यवाद जिन्होंने शिक्षा को न केवल आर्थिक विकास बल्कि सामाजिक,बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से भी देखा और अपनी संस्कृति,रीति-रिवाजों,परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं।
अफसोस उन लोगों के लिए जो सरकार द्वारा प्राप्त रोजगार तो यहां रहकर कर रहे हैं परन्तु निवेश शहरों की ओर कर रहे हैं और पलायन को बढ़ावा दे रहे हैं।
नजीबाबादै इफ्तिखार हुसैन बैंड बाजौं मां बढ़ै बजाणो च।
नरेन्द्र सिंह नेगी जी की पूरी कविता सुनें, यूट्यूब पर सर्च करें
उत्तराखण्ड का अखरोट कब प्रसाद का रूप लेगा?
सभी लोग तो यहां रहकर रोजगार नही कर सकते या गुजारा नही कर सकते कुछ प्रतिभाशाली युवक-युवतियों को अपनी प्रतिभा,शिक्षा के हिसाब से बाहर निकल कर देश और दुनिया में अपना और इस पहाड़ी राज्य का नाम भी रोशन करना ही होगा,लेकिन वे युवा जिनकी मासिक आय पहाड़ों की अपेक्षा शहरों में कम है या फिर आय तो ठीक है परन्तु मकान का किराया,परिवहन,आदि बहुत खर्चों से कुछ ज्यादा नही बचा पाते परन्तु मजबूरी,आपसी प्रतिस्पर्धा आदि के कारण शहरों की ओर ही भाग रहे हैं। ऐसे युवा जो अपनी प्रतिभा अपने हुनर से यहीं रोजगार करना चाहते हैं परन्तु बहुत से कारणों से नही कर पा रहे हैं।
उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों के बाजारों में आज बाहरी लोगों का व्यापार और काम बहुत फल-फूल रहा है जबकि स्थानीय नौजवान पढ़े-लिखे भी व कम शिक्षित भी शहरों में कम ग्रेड पे में काम करने को मजबूर है। इसका एक मुख्य कारण है शिक्षा को केवल आर्थिक विकास,रोजगार की दृष्टि से देखना, स्वरोजगार से नही। हम लोगों ने अपने किसी भी काम का विस्तार नही किया हमने अपने कामों को खुद ही इज्जत नही दी, किसी भी काम को निम्न श्रेणी का ही समझते हैं। बाहरी लोगों के कार्यों को सराहा,उनसे काम लिया।
बहुत से उदाहरण है-मान लिया जाए कोई नौजवान पढ़ा-लिखा या फिर थोड़ा कम ही शिक्षित है, शहर में गया और एक कंपनी में काम पर लग गया लेकिन वह देखता है कि इससे अधिक या इतना ही मैं अपने घर पर रहते हुए कमा सकता हूँ और साथ में खेती-बाड़ी व अन्य काम भी। वह गांव लौटा उसने अपने हुनर से कोई भी कार्य में दक्षता हासिल की हो जैसे- मिस्त्री,कारपेन्टर,पेन्टर,वैल्डिंग,इलेक्ट्रिशियन,प्लम्बर,टेलर,मैकेनिक आदि बहुत से कार्य। पर कम ही इसमें सफल हो पाते हैं जिसने कार्य निंदा,आलोचना,मनोबल गिराने वाले लोगों,और सबसे बड़ी बात नशा,शराब आदि पर विजय प्राप्त कर ली हो व अपने कुशल व्यवहार से सबका विश्वास जीत लिया हो।
यहाँ के लोगों द्वारा बाहर से आए हुए लोगों को ही ज्यादा प्रोत्साहन देते हुए देखा जा सकता है।
पहले नाई आए,फिर कसाई,फिर सब्जी-फल,फिर मिस्त्री,कारपेन्टर,पेन्टर,वैल्डिंग,इलेक्ट्रिशियन,प्लम्बर,टेलर,मैकेनिक आदि।
अब तो संस्कृति पर भी प्रहार हो रहा है, कारण वही स्थानीय लोगों को प्रोत्साहन व महत्व की कमी,अपने काम को कम श्रेणी का समझना।
बैंड बाजा,ढोल,रणसिंहा,सब बाहरी लोगों द्वारा।
कुछ समय बाद फोटोग्राफर,बिरयानी बनाने वाला आदि।
शायद कहीं-कहीं तो पहुँच भी गए हैं।
स्थानीय कृषि उत्पादों,फल सब्जियों,दूध,दुग्ध उत्पाद का व्यवसाय,विकास,विस्तार
माँ वैष्णो देवी के दर्शन कर लौटे बहुत से लोग शहरों में प्रसाद के रूप में वहाँ के लोगों द्वारा उगाए और बेचे गए अन्य ड्राई फ्रूट्स के साथ अखरोट अपने पास-पड़ोसियों और रिश्तेदारों को वितरित करते हैं।
वो अखरोट जिन्हें शायद वहां वर्षों पहले किसी और लोगों ने उगाए होंगे
और आज कोई और प्रसाद के रूप में अपना व्यापार कर रहे हैं।
आप लोग समझ रहे होंगे।
हमारे पहाडों का अखरोट कब प्रसाद का रूप लेगा कब इन्हें कोई मंदिर के बाहर बेचेगा और कब इनके पेड़ो का विस्तार होगा मैं बताता हूँ।
यह तब प्रसाद का रूप लेगा जब हमारे बहुत से लोग प्रकृति को दोष देते हुए यह कहकर पलायन कर रहे होंगे कुछ नही होता इन बंजर पहाडों में जबकि सत्य यह है कि हमारे पूर्वजों ने यहीं रहकर अपना जीवन बिताया और विभिन्न उपजों,और फलों आदि का विकास और विस्तार किया।
यह तब व्यावसायिक रूप लेगा जब बाहर से आए वे लोग जिन्हें किसी भी कार्य करने में कोई शरम,परेशानी नहीं होती फिर चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित जिन्हें मालूम है मेहनत करने पर प्रकृति कभी भूखा नही छोडेगी।
आप लोग समझ ही रहे होंगे।
अखरोट या अन्य फल, तब व्यावसायिक रूप लेंगे जब वे लोग हमारे पूर्वजों के रोपे गए पेड़ों पर अपना अधिकार जमाकर उनका विस्तार खाली पड़ी जमीनों में करेंगे।
यहां के कृषि उत्पाद,फल,दूध,सब्जियां तब व्यावसायिक होंगे जब यहां घनी आबादी वाले लोगों का आना शुरू होगा तथा सरकारें उनके दबाव में कहो या वोट बैंक, अच्छी सड़कों,बिजली,पानी आदि का तेजी से विकास करेगी, और देश के विकास में एकमात्र योगदान देने वाले हमारे शिक्षित एक या दो बच्चों वाले लोगों का पलायन होगा जो कहते हैं कि यहां गुजारा नही हो पा रहा है वो भी तब जब सरकार सस्ते दामों पर अनाज,स्वरोजगार व और भी विभिन्न योजनाएं उपलब्ध करवा रही है।
यहां का विकास ही तब होगा जब भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण को पूजने वाले,परन्तु उनके आदर्शों,उनके बताये मार्गों (ऊंच-नीच,जात-पात,ईर्ष्या,निंदा आदि)पर न चलने वाले लोग नही रहेंगे क्योंकि ये गुण भी हमारे अस्तित्व के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं।
और अंत में-यहां की हर वस्तु की कीमत,व्यवसाय,हुनर,प्रतिभा,का अंदाजा तब लगेगा जब यहां के लोग शहरों में अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से छोटे छोटे कमरों से लेकर ऊंचे ऊंचे भवनों में रहकर केवल पैसे की खेती उगाकर देश के विभिन्न धार्मिक स्थलों की भांति पंजीकरण करके देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों की यात्रा पर आएंगे और यहां के उत्पादों को ऊंची कीमतों पर खरीद कर शहर जाकर प्रसाद और गिफ्ट के तौर पर वितरित करेंगे।
उपरोक्त लेख में अलग अलग विषयों पर विस्तार से लिखा जा सकता है परन्तु न लोग बड़े लेख पढ़ते हैं, न अपने विचार व्यक्त करते हैं और न ही शेयर करते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं और हम अपने अस्तित्व को बचाने के मामले में बहुत पीछे हैं हमारे अंदर ईर्ष्या,निंदा,जात-पात,मनोबल गिराने वाली प्रवृत्ति,प्रोत्साहन और महत्व न देना, आदि बहुत से न दिखाई देने वाले खतरनाक वायरस जो हैं।
Post by-Jagmohan Patwal
Village-Thabriya Malla